कृष्ण जी की आरती: कृष्ण जी की जन्म कथा और आराधना का महत्व - Krishna Ji Ki Aarti: Krishna Ji Ki Janam Katha aur Aaradhana Ka Mahatva - Sabhi Bhagwan Ki Arti

Sabhi Bhagwan Ki Arti 

कृष्ण जी (Krishna Ji), जिन्हें नन्दलाल, श्याम, यशोदा नंदन, या माखनचोर के नामों से भी जाना जाता है, हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण और प्रिय देवता हैं। उनका जन्म, विष्णु अवतार के रूप में, भगवान के आवागमन की कहानी के रूप में जानी जाती है। इस ब्लॉग में, हम आपको कृष्ण जी (Krishna Ji) की जन्म कथा के रूप में उनके महत्वपूर्ण जन्मोत्सव को जानने के साथ-साथ "कृष्ण जी की आरती" का महत्व भी समझाएंगे।


कृष्ण जी की जन्म कथा (Krishna Ji Ki Janam Katha):


कृष्ण जी (Krishna Ji) का जन्म महाभारत काल में विष्णु के आवागमन के रूप में हुआ था। उन्होंने मथुरा नगर में जन्म लिया था, जो हिन्दी प्राचीन काल की एक महत्वपूर्ण नगर था। उनके माता-पिता का नाम वासुदेव और देवकी था।
कृष्ण जी (Krishna Ji) का जन्म असमान्य था। उनके पिता वासुदेव को अपने भाई और देवकी को उसके भगवानी दुलार के लिए भगवान विष्णु ने दिया था। हिन्दू पुराणों के अनुसार, उनके जन्म के समय रात का अद्भुत और आकर्षक मौसम था।
कृष्ण जी का जन्म रात के वक्त हुआ था, और वे विष्णु के स्वरूप में प्रकट हुए थे। उनके माता-पिता ने उनके आवागमन के समय उनकी सुंदरता और आकर्षण को देखकर हैरानी में सिमट गए थे।
वासुदेव ने अपने गोपाल रूप को दुल्हन बनाकर उन्हें ले जाने का प्रयास किया, और भगवान के हुकम से उन्होंने उन्हें गोकुल में पहुंचाया। उनका जन्म से पहले और जन्म के बाद कई आश्चर्यजनक घटनाएं हुईं, जिनमें कांस राक्षस का वध करना भी शामिल है।
कृष्ण जी का बचपन गोकुल में खुशी-खुशी बीता, और वे एक आदर्श बच्चे के रूप में अपने गोपी भक्तों के द्वारका और गोकुल वालों के बीच पसंद थे।
कृष्ण जी की जन्म कथा के साथ, आईए हम अब "कृष्ण जी की आरती" के महत्व की ओर बढ़ते हैं।

कृष्ण जी की आरती (Krishna Ji  Ki Aarti):

आरती कुँजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।

आरती कुँजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥


गले में बैजंती माला, बजावें मुरली मधुर बाला।

श्रवण में कुण्डल जलावें, कानन कुंडल शोभित चारु॥


श्रीशय्यजी के दर्शन पावें, त्रिभुवन मन मोहित चारु।

धरती ध्यान से सजावें, आकर्षक रूप मधुर धारु॥


ब्रज के नंदलाल कन्हैया, हरि के परमानंद स्वामी।

वंदन करती संतन आरती, जय जय गिरिधर कृष्ण मुरारी॥


कटिपय राजत मोरमुकुट, मेणी माकर कुण्डल शोभित।

वनमाला श्रवण में धर, सारसिज नयन विराजित॥


लाल रविकिरण मुकुट धर, कुण्डल नयन चारु भुजावें।

श्री वतसल अवधबिहारी कुंजबिहारी आरती गावें॥


मूक मुँह मोर, करत जोर, गले गोवर्धन दवारि।

धृतकुँडल श्रवणमुखवासी, विमान विहारि॥


नंदनंदन कुँवर वृषभानु, श्याम सुंदर सुलीवारि।

अंग गंगराम, खेलत विलसत बनमालि भारि॥


अरविन्द सहज निरंतर सुन्दर मुकुट मणि धारी।

अकटि अरजुन अमराई गोपाल चितवन धारी॥


मधुराधिपति रासरस मधुरी करत बृंदावन भारी।

वीर सातवल मणिमुख सुरसुर अन्दकारी॥


तान अति मीठी, मधुर गाती, प्रेम पूरित पयोधारी।

स्तुति करत भक्तन हृदय में विषय नयनान्त भारी॥


वेणु वज्र धर, वरद नृत्य करत, बंसी धर बांके बिहारी।

वंशीधर श्रीनाथ अनंत सुर मुनि जननायक धारी॥


आरती कुँजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।

आरती कुँजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥


कृष्ण जी की आरती: महत्व और आदर्श आरती (Krishna Ji Ki Aarti: Mahatva aur Adarsh):


"कृष्ण जी की आरती" हिन्दू धर्म में कृष्ण भगवान की पूजा का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस आरती का महत्व इसके श्रावण और गाने से ही नहीं, बल्कि इसके प्रतिदिनी पाठ से भी है। यहां हम इस आरती के महत्व को और समझते हैं:

1. भगवान कृष्ण की पूजा: "कृष्ण जी की आरती" का प्रावण भगवान कृष्ण की पूजा में भाग लेने के रूप में होता है। यह आरती कृष्ण भगवान के आगमन के रूप में प्राप्त हुआ था और उनके आराधकों द्वारा उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए पढ़ा जाता है।

2. आत्मिक शांति और सुख: "कृष्ण जी की आरती" का पाठ करने से आत्मिक शांति और सुख मिलता है। यह आरती मन को शांति और साक्षात्कार की दिशा में मदद करती है।

3. धार्मिक संज्ञान: इस आरती के माध्यम से लोग अपने धार्मिक संज्ञान को भी बढ़ाते हैं और भगवान कृष्ण के आदर्शों का पालन करते हैं।

4. समर्पण और आदर्श: यह आरती भक्तिभाव से भरपूर है और भगवान कृष्ण के प्रति आदर्श समर्पण की भावना को प्रकट करती है।

5. धर्मिक सम्प्रेषण: "कृष्ण जी की आरती" द्वारा, धर्मिक संप्रेषण की भावना को सशक्त किया जाता है, और लोग अपने आदर्शों का पालन करने के लिए प्रेरित होते हैं।


"कृष्ण जी की आरती" के महत्व (Krishna Ji Ke Mahatva)


"कृष्ण जी की आरती" का पाठ भक्तों के द्वारा उनके इष्टदेवता के प्रति उनकी भक्ति और आदर्श समर्पण का संकेत करता है। यह आरती के महत्वपूर्ण कारण है:


1. आराधना का रूप: इस आरती का पाठ करके भक्त अपने इष्टदेवता की आराधना करते हैं और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए प्राणी रूप से प्रयासरत रहते हैं।


2. धार्मिक शिक्षा: आरती का पाठ करने से धर्मिक शिक्षा प्राप्त होती है, और भगवान के आदर्शों का पालन किया जा सकता है।


3. सांस्कृतिक महत्व: इस आरती के पाठ के माध्यम से भक्त सांस्कृतिक महत्व को समझते हैं और धर्मिक प्रथाओं को आगे बढ़ाते हैं।


4. भक्ति और आदर्श: इस आरती के माध्यम से भक्ति और आदर्श की भावना को बढ़ावा दिया जाता है और लोग अपने इष्टदेवता के प्रति समर्पित रहते हैं।


5. समाजिक एकता: आरती को समूह में पढ़ने से समाजिक एकता और धार्मिक समरसता की भावना बढ़ती है, और लोग एक साथ आराधना करते हैं।


कृष्ण जी की आरती कैसे करें (Krishna Ji Ki Aarti Kaise Kare)


"कृष्ण जी की आरती" को पाठ करने के लिए निम्नलिखित कदमों का पालन करें:


1. साफ और शुद्ध रूप से: आरती करने से पहले हाथ धोकर और शरीर को शुद्ध करें।


2. ध्यान: अपने मन को शांत करें और भगवान कृष्ण की प्रतिमा या चित्र की ओर ध्यान केंद्रित करें।


3. आरती की शुरुआत: आरती की शुरुआत "श्री कृष्ण जी की आरती" के शब्दों का पाठ करके करें।


4. दीपक की प्रदीपन: आरती के पाठ के दौरान एक दीपक को घुमाएं और भगवान कृष्ण की प्रतिमा के सामने सजाकर प्रदीपन करें।


5. संगीत: आरती के पाठ के साथ संगीत का प्रदीपन करें।


6. पुष्प और प्रसाद: आरती के बाद भगवान कृष्ण को पुष्प और प्रसाद चढ़ाकर समर्पित करें।


7. आरती के बाद की प्रार्थना: आरती के बाद भगवान से अपनी मनोकामनाओं की प्रार्थना करें और उनकी कृपा के लिए बिन्ती करें।


समापन


"कृष्ण जी की आरती" भगवान कृष्ण की भक्ति और समर्पण का एक अद्वितीय तरीका है। यह आरती हमें भगवान कृष्ण के महत्वपूर्ण जन्मोत्सव की जन्म कथा और उनके आराधना के महत्व को समझाती है। इसके माध्यम से हम आत्मिक शांति, सुख, और आदर्श जीवन की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। इस आरती को पाठ करके हम भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति और समर्पण का संकेत करते हैं और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए प्राणी रूप से प्रयासरत रहते हैं।



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